हर दिन आप अख़बार में IIT IIM के बारे में पढ़ते रहते हैं , उनकी कामयाबी, पैसों का अम्बर ,नौकरी और भी न जाने क्या क्या . शायद हीं कभी अपने कुछ ऐसा मेडिकल कॉलेज के बारे में सुना होगा .क्यूँ ? क्या मेडिकल कॉलेज में पढाई नहीं होती , या वहां पढ़ के कोई ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर पता , या फिर मेडिकल की पढाई किसी काम की नहीं है .बाकि की तो छूर दो शायद हीं कभी AIIMS का नाम सुने मिलता है वो भी किसी गलत कारन के लिए .
वजह क्या है - दर्ससल हम हिन्दुस्तानी "shortcut" के दीवाने हैं . हमें सब कुछ फटा फट चाहिए कामयाबी, शोहरत, नाम, घर -बा,र बीवी और न जाने क्या क्या . इंतज़ार करने की आदत हमारी तो नहीं है . भले ही इसके लिए लाइन तोरनी परती हो ,गलियां खानी परती हो या कभी कभी मार , सब कुछ मंजूर है पर दो पल इंतज़ार नहीं .इसी फटा फट के चलते हम सिर्फ उन्ही चीज़ों को देखना चाहते हैं जिनमे ये गुन व्याप्त है . आज मेरे कई भाई - बहन इन्जिनीर्स या और कुछ बनने जा रहें है और हर दिन पापा से येही सुनने को मिलता है " बेटा शर्म करो तुमसे पहले कमाएंगे तुमसे पहले ज़िन्दगी में सब कुछ करेंगे ( शादी भी ). " सुन के कभी कभी लगता है की शुरुआत तो साथ की फिर हम पीछे कैसे रह गए .और हैं तो हिन्दुस्तानी हीं इंतज़ार की बात सुनते हीं दिमाग काम करना बंद कर देता है . फिर लगता है की कौन सी पल था जब डॉक्टर बन्ने का विचार आया . खैर मैं तो यह सोच के खुश हो लेता हूँ की डॉक्टर बना पापा के कहने पे , तो कुछ भी हो नारियल अपने सर पे तो नहीं फूटेगा . पर जो घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ डॉक्टर बनने आ गए हैं उनके उपार तो नारियल क्या पूरे नारियल का पेड़ गिरने की आशंका बनी रहेगी .
अब जो कुछ लिख रहा हूँ वो अपने जैसे लोगों को दिलासा देने के लिए हैं - इंतज़ार का फल मीठा होता है , अरे इतना भी क्या इंतज़ार की फल पाने की ख्वाइश ही खो जाये . कोई भारत सरकार को समझाए 9-१० साल पढ़ते पढ़ते बिता देना कितनी बरी चीज़ हैं . खुद तो कई नेता मेट्रिक तक पढ़ नहीं पते पर हमें पढाई करने का उपदेश देने से बाज नहीं आते .और तो और जनता की सेवा करने की सिख भी देते है (rural service-1 yr). यार पढ़ के तो वही करेंगे लोगों की सेवा . सवाल यह है की हर बार यह सिख सिर्फ हमें हीं क्यूँ दी जाति हैं , कभी उन इन्जिनीर्स को भी कहा करो जो सरकार के पैसे पे पढ़ कर विदेश प्रस्थान कर जाते हैं ,उन मैनेजमेंट वालों को भी कहो जो सिर्फ पैसे गिनते हैं - हर बार सूली पे हमी क्यूँ चढ़ें .एक तो वैसे हीं हिन्दुस्तानी होकर इंतज़ार कर रहें हैं ऊपर से हमारा शुक्रिया अदा करने के बजाये हमारी हीं band बजा रहे हो . येही सिलसिला रहा तो शायद ऐसा भी एक दिन आयेगा जब कोई डॉक्टर बनने को तयार नहीं होगा (आखिर कामयाबी और बीबी किसे नहीं चाहिए....).
इसीलिए शिक्षा मंत्रालय को विनम्र से बोल रहें है " सुधर जा मामू नहीं तो देश की waat लग जाएगी "